अभक्ष्य पदार्थो में अनन्त शुक्ष्म जीव उत्पन्न होते है:- मुनि श्री 108 यतीन्द्र सागर जी।

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देवली:-(बृजेश भारद्वाज)। मुनि संघ का इंदौर के लिए विहार चल रहा है जिसमे से अल्प प्रवास देवली समाज को मिला। मुनि श्री पार्श्वनाथ मन्दिर-पटेल नगर, शांतिनाथ मन्दिर विवेकानन्द कॉलोनी, दर्शन करते हुए पार्श्वनाथ धर्मशाला पहुंचे जहाँ युगल मुनिराज द्वारा धर्मसभा को अपनी पीयूष वाणी से लाभान्वित किया। प्रवचन के दौरान सर्वप्रथम द्वीप प्रज्वलन, पाद प्रक्षालन एवं शास्त्र भेंट, शांतिनाथ युवा मंडल के सदस्यों द्वारा किया गया। सर्वप्रथम मुनि श्री 108 यतीन्द्र सागर जी ने धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए बताया कि हमारे लिए क्या खाने योग्य है क्या नही अभक्ष्य पदार्थो में अनन्त शुक्ष्म जीव उत्पन्न होते है जो की हमे दिखाई नही देते लेकिन उनकी उपस्थिति उन पदार्थ में होती है

अतः उन पदार्थ का त्याग करना सर्वोच्च है। इसी तरह परम पूज्य श्रमण मुनि108 श्री अनूपम सागर जी महाराज ने सभा को सम्बोधित करते हुए ताश के खेल से धर्म का महत्व बताया एवं कहा की समाज के अध्यक्ष हो या परिवार का मुखिया हो उसे सदैव बिलोने में लगी मथनी के रस्सी की तरह लपेटकर रखना चाहिए ना की बांध के रखना चाहिए, जिस तरह से रस्सी को बैलेंस कर के छाछ में से घी निकल जाता है उसी तरह परिवार को भी बैलेंस कर के चलना चाहिए! धर्मसभा के दौरान बाहर से पधारे अतिथि का स्वागत-सम्मान समाज द्वारा किया गया, तत्पश्चात मुनि संघ का पड़गाहन शांतिनाथ मन्दिर के बाहर हुआ जिससे संघ की आहारचर्या सम्पन्न हुई। विकास जैन(टोरडी) ने जानकारी देते हुए बताया की महाराज श्री के प्रवास के दौरान प्रत्येक दिन शाम को जीवन से जुड़े, परिवार से जुड़े कई सुलझे-अनसुलझे किस्सो के बारे में विशेष प्रवचन के दौरान सभी को जीवन जीने की कला के बारे में बताया जाएगा।

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