पंचकल्याणक पाषाण को परमात्मा बनाने की क्रिया:-मुनिश्री वैराग्य सागर।

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देवली:-(बृजेश भारद्वाज)। शहर के कूंचलवाड़ा रोड़ जैन कॉलोनी में श्री पार्श्वनाथ मंदिर में गुरुवार से 6 अप्रेल तक पंच कल्याणक एवं नवीन वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव मुनिसंघ वैराग्य सागर महाराज एवं आर्यिका स्वस्तिभूषण माताजी के सानिध्य में कार्यक्रम होंगे।बुधवार को आर्यिका स्वस्तिभूषण का
जहाजपुर चौराहा से बैंड बाजे के साथ शहर में मंगल प्रवेश हुआ। महावीर जैन मंदिर पहुंचने के बाद धर्मसभा का आयोजन हुआ।

जिसमें गणिनी आर्यिका स्वस्तिभूषण माताजी ने कहा कि जीव स्वभाव वश जब तक आंखे खुली है तब तक छोटी छोटी बात पर लड़ता है।जब आंखे बंद होती है तो सब यही छोड़कर चला जाता है।किसी के साथ भी कब क्या घटित हो जाए पता नही है। दुख का कारण बाहरी आवरण है विचार बदल जाए तो अंनत सुख मिल जाते है। पंचकल्याणक पूण्य बढ़ाने,पाप घटाने एवं मोक्ष गमन का माध्यम है।पंचकल्याणक क्रियाओं को देखकर भगवान बनने का रास्ता मिल जाता है।ऐसी क्रियाओं को देखने सौधर्म इंद्र तक धरती पर आ जाता है। मुनिश्री वैराग्य सागर महाराज ने कहा पंचकल्याणक नाटक नही पाषाण को परमात्मा बनाने की क्रिया होती है।

उन्होंने कहा भगवान अबरार नही लेते वह पुरुषार्थ से बनते है।पंचकल्याणक के माध्यम से पुरुषार्थ को जाग्रत करना है। किसी के पास भी ज्ञान होना बड़ी बात नही है लेकिन समझदार होना जरूरी है।मुनिश्री ने कहा ज्ञान सिर्फ तर्क वितर्क करता है और विवेक समर्पण सिखाता है।धर्म सभा में मुनि सुप्रभ सागर ने कहा अच्छे भावों से क्रिया की जाती है उसका महत्व है पंचकल्याणक से बढ़कर जीवन की कोई क्रिया नही हो सकती है।उन्होंने कहा हर आत्मा में परमात्मा बनने की शक्ति है,जीवन रूपी बीज को सही उपचारित कर अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।प्रवचन से पूर्व चित्र अनावरण,दीप प्रज्ज्वलन, मंगलाचरण मुनि एवं आर्यिका को श्रीफल एवं शास्त्र भेंट किया गया।

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