देवली:- (बृजेश भारद्वाज)। अटल उद्यान स्थित टीनशेड प्लेटफार्म पर चल रही श्रीभक्तमाल कथा के चतुर्थ दिवस पर कथावाचक श्रीश्री 1008 महामण्डलेश्वर दिव्य मोरारी बापू ने बताया कि कार्य को करने पर बोझ नहीं आनंद की अनुभूति होने लगे, इसे ही प्रेमा भक्ति कहते हैं।
प्रयागराज में बेणीमाधव भगवान का मंदिर है, 13 वीं सदी में पुण्यसदन व सुशीला नामक दम्पति जब मंदिर गये तो भगवान ने प्रकट होकर दक्षिणा वृत्ति शंख देकर आशीर्वाद दिया कि मैं स्वयं आपकी कोख से जन्म लूंगा। रामानंदाचार्य के रुप में भगवान अवतरित हुए, इन्होंने 260 वर्ष का जीवन जिया, लेकिन कभी नमक नहीं खाया, सिर्फ दुध की खीर ही खाते थे। साक्षात वशिष्ठ ऋषि के अवतार राघवानंदाचार्य जी इनके गुरु थे।
कलयुग भी रामानंदाचार्य जी के शिष्य बने तथा कलयुग ने गुरुदक्षिणा में भगवान की भक्ति करने वाले को परेशान नहीं करने का वचन दिया था। भगवान की भक्ति करने वाले की कलयुग के साथ ही सृष्टि भी रक्षा करती है।
मनुष्य का जन्म ओर मृत्यु, भय ओर क्षेम, सुख ओर दुख भी प्रारब्ध के कर्मों के आधार पर मिलते हैं। स्वामी अनंतानंदाचार्यजी का महेशपुर में विश्वनाथ त्रिपाठी के घर जगत के कल्याण के लिए विक्रम सम्वत 1213 में अनन्ताचार्यजी का जन्म हुआ। यह ब्रह्मा जी के अवतार थे। वाक सिद्धि का वरदान सरस्वती ने दिया। पण्डित श्याम किशोर से शिक्षा ग्रहण की। नाभा गोस्वामी जी अनन्ताचार्यजी के बारे में कहते हैं कि इनका शिष्यत्व ग्रहण करने वाले लोकपाल जैसे हुए।
संतों का आश्रय लेने से दुर्गुण समाप्त होते हैं, जैसे सूनसान मकान में जुआरी, शराबी अपना अड्डा जमा लेते हैं, लेकिन उसी मकान में किसी अधिकारी का बंगला बनाने की घोषणा हो जाये तो सभी व्यसनकारी मकान से भाग जायेंगे, वैसे ही मस्तक पर तिलक लगते ही सभी दुर्गुण भाग जाते हैं।
जिस तरह एक ही नदी में अलग अलग घाट होते हैं, उसी तरह अलग अलग रुप होने पर भी भगवान एक ही होते हैं। इसी के साथ धूमधाम से राम जन्मोत्सव मनाया गया। जिसमें रामजी के बालरूप की सजिव झांकी सजाई गई।इस दौरान बांटी गई बधाई को लूटने के लिये श्रद्धालुओं की भीड उमडी।