देवली:-(बृजेश भारद्वाज)। श्री भक्तमाल कथा के बारहवें दिवस पर कथावाचक श्रीश्री 1008 महामण्डलेश्वर दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि आप कितना ही भजन, व्रत, पूजा पाठ, दान, पुण्य करें, फल तभी मिलता है जब भगवान से प्रेम हो, बिना प्रेम सब बेकार है। भगवान सिर्फ भाव के भूखे हैं।
बापू ने बताया कि एक संत गोकुल में बल्लभाचार्य जी के दर्शन करने गये तब अपने बटुआ को पेड पर लटकाया था, वापस आये तो बटुआ नहीं मिला, जिस पर संत ने महाराज से कहा, हमारे बटूआ में ठाकुर जी थे, वो नहीं मिले। बल्लभाचार्य जी ने कहा कि अब जाकर देखो। वहां पर बहुत सारे बटुए थे। संत ने सभी बटुओं को खोलकर देखा, लेकिन अपने ठाकुर जी को पहचान नहीं सके।
वापस बल्लभाचार्य जी के पास गये, महाराज ने कहा कि इतने सीधे भी मत बनो, कि अपने ठाकुरजी को नहीं फहचान सके। इसका मतलब आपने पूजा तो की लेकिन ठाकुरजी से प्रेम नहीं किया। बापूजी ने बताया कि देश में दक्षिण से भक्ति ओर उत्तर से ज्ञान का प्रचार प्रसार हुआ है। भक्त के भाव की विवेचना करते हुए बताया कि कोस्तुभ मणि के अवतार कुलशेखर जी दक्षिण भारत के महान राजा थे। भगवान, साधु व ब्राह्मण की भक्ति करते थे। इनके राज्य में रामराज जैसी व्यवस्था थी। कुलशेखरजी की संतों में बहुत निष्ठा थी। इन्होनें मुकुंद माल ग्रंथ की रचना भी की थी, जिसके मंत्रों का हम जप करते हैं। कुलशेखरजी भाव प्रधान थे।
एक बार अरण्य कांड में सीता हरण की कथा सुनकर आवेश में आकर सेना लेकर रावण से युद्ध करने चल पडे। जोश व भाव में आकर लंका जाने के लिए ये घोडा लेकर समुद्र में कूद गये। इसी वक्त श्रीराम जी ने प्रकट होकर इनके घोडे की रस्सी पकडकर बाहर निकालने लगे, कुलशेखरजी ने कहा कि मैं रावण से युद्ध कर माता सीता को लेकर आऊंगा, जबकि युद्ध तो वर्षों पूर्व ही समाप्त हो गया था, आखिर में भगवान ने सीता माता के साथ दर्शन दिये, तब कुलशेखरजी वापस आये। कथा में बताया कि लीलानुकरणजी को एक बार कहा कि आप नृसिंह बन जाओ।
लीलानुकरणजी ने भाव प्रधानता में आकर अपने को नृसिंह समझकर हिरण्यकश्यप बने व्यक्ति का पेट फाडकर वध कर दिया। लोगों ने भाव प्रधान की परीक्षा लेने के लिए इनको दशरथ बनाया तो इन्होंने राम वनवास के वक्त अपना शरीर ही छोड दिया। रजवंती बाई की कथा में बताया कि भगवान का नाम जप करना, कीर्तन करने में लगी रहती थी। एक बार तबियत खराब होने पर अपने पुत्र को भेज दिया कि आप कथा सुनकर आओ, ओर मुझे सुना देना।
इस दिन दामोदर लीला की कथा सुनाई, रजवंती बाई को पुत्र ने बाल रूप भगवान को रस्सी से बांधने की कथा सुनाई तो भगवान की पीडा का अहसास करते हुए रजवंती बाई ने अपना शरीर ही छोड दिया। कथा के दौरान आयोजित कीर्तन में श्रद्धालुओं ने भावविभोर होकर नृत्य किया। आरती व प्रसाद वितरण के साथ आज की कथा का समापन हुआ।