देवली:-(बृजेश भारद्वाज)। त्योहार आते ही लालची दुकानदार अपने नापाक मंसूबो को अंजाम देने के लिए तैयारी में जुट चुके है।उन्हें लोगों की सेहत से कोई लेना देना नही, उन्हें मतलब है तो सिर्फ अपने मोटे मुनाफे से…..
मिलावटी घी व मावा की बिक्री पर रोक के लिए विशेष ध्यान देने की जरूरत……
दीपावली के सीजन में घी व मावे की डिमांड आम दिनों के मुकाबले बहुत अधिक बड़ जाती है जिसके चलते इन चीज़ों में मिलावट की संभावनाएं भी ओर अधिक प्रबल हो जाती है। ऐसे में ग्राहकों की मज़बूरियो का फायदा कुछ दुकानदार उठाने में कोई कसर नही छोड़ते……
चाहे मिठाई वाले हो या दूध डेयरी वाले…. हालांकि ज्यादातर दुकानदार ईमानदारी से अपना धंधा करते है लेकिन कुछ आदतन मिलावटी दुकानदार है जो कि हर त्यौहार पर लोगो के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने से बाज़ नही आते है। ऐसे दुकानदारों की खाद्य विभाग को भली भांति जानकारी होने के बावजूद उन पर कठोर कार्यवाही नही करते है। खेर कारण जो भी रहता हो मगर इस मिलावटी जहर से नुकसान सिर्फ ग्राहक का ही होता है। जिसको की पैसा देकर भी मिलावटी सामान ही खरीदने पर मजबूर होना पड़ता है।
इस पूरे मामले में सबसे बड़ी भूमिका स्वास्थ्य विभाग की है, लेकिन हकीकत यह है कि इस अभियान को शुरू करने वाले खाद्य विभाग के पास न तो पर्याप्त संसाधन हैं और न ही स्टाफ। जांच के लिए भेजे गए सैंपल की रिपोर्ट भी बाहर जाती है। रिपोर्ट आने में करीब 20 दिन लग जाते हैं।जब तक मिलावट अपना असर ग्राहक के स्वास्थ्य पर दिखा चुकी होती है।
खाद्य सुरक्षा कानून (फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट-2006) के तहत मिलावटी खुले में सामग्री बेचने वाले दुकानदारों पर जुर्माने का प्रावधान है और उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है। खुली पड़ी सामग्री को बचाने के लिए कोई इंतजाम नजर नहीं रहा है। बिना संसाधनों के अफसरों की औपचारिक कार्रवाई और दुकानदारों के मुनाफा कमाने के चक्कर में इन खाद्य पदार्थों के सेवन से आम आदमी की सेहत बिगड़ सकती है। इन दिनों फेस्टिवल सीजन चल रहा है। ऐसे में शहर ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में लोग खाद्य सामग्री की खरीद कर रहे हैं। इसके बावजूद दुकानदार और जिम्मेदार अफसर लोगों के स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह हैं। पांच अगस्त 2011 को लोकसभा में पारित खाद्य सुरक्षा कानून के तहत 12 लाख रुपए सालाना आय वाले व्यवसायी को खाद्य लाइसेंस लेना अनिवार्य है। इस कानून के तहत खुले में बेची जा रही और मिलावटी सामग्री के सैंपल भरने का प्रावधान है। सैंपल फेल होने की स्थिति में दुकानदार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई अमल में लाई जाएगी। इस स्थिति में 10 लाख रुपए तक जुर्माना और छह साल तक की सजा भी हो सकती है।
कानून तोड़ने पर सजा जुर्माना
>जिस प्रकार का खाद्य पदार्थ मांगा गया है, वैसा नहीं दिए जाने पर दो लाख रुपए।
>घटिया स्तर की खाद्य सामग्री बेचने पर तीन लाख रुपए।
>गलत भ्रम पैदा करने वाले विज्ञापन देने पर दस लाख रुपए।
>खाद्य सुरक्षा अधिकारी की ओर से दिए गए निर्देश का पालन नहीं करने पर दो लाख रुपए।
>जुर्माने की रकम समय पर जमा नहीं कराने पर भू राजस्व के रूप में वसूली ऐसा नहीं होने पर लाइसेंस निलंबित।
>निर्धारित समय में जुर्माना अदा नहीं करने पर एक से तीन साल की कैद।
>खाद्य सुरक्षा कानून का उल्लंघन करने पर पांच लाख रुपए जुर्माना और छह साल की सजा।
>झूठी सूचना या दस्तावेज देने पर तीन महीने की कैद और दो लाख रुपए का जुर्माना।
>बगैर लाइसेंस खाद्य वस्तुओं का व्यापार करने पर छह महीने की कैद तथा पांच लाख रुपए का जुर्माना।
दीपावली सीजन शुरू होने के साथ ही स्वास्थ्य विभाग मिलावट के खिलाफ अभियान की शुरुवात में जुट गया है इसके तहत मिठाइयों की दुकानों पर जांच की जाएगी, ताकि मिलावट को रोका जा सके। वहीं बड़ा सवाल यह है भी है कि त्योहार पर जब कई गुना अधिक मिठाइयां बनती हैं तो क्या मिलावट को रोक पाना संभव है। पूरे देश के साथ ही जिले में भी हर साल मिलावट के अनेक मामले सामने आते हैं, जिससे स्वास्थ्य पर असर पड़ता है।
बड़ा सवाल : विभाग के लिए
दीपावलीपर मिठाइयों की बिक्री कई गुना बढ़ जाती है। ऐसे में विभाग इन पर पूरी निगरानी नहीं रख पाता। यदि विभाग समय पर कार्रवाई करे तो इसे रोका जा सकता है।