देवली:-(बृजेश भारद्वाज)। पंडित दीनदयाल उपाध्याय कृषि महाविद्यालय, सिरोही – टोंक में अंतिम वर्ष के कृषि स्नातक छात्रों को मृदा विज्ञान विषेशज्ञ डॉ आर सी सांवल द्वारा केंचुआ खाद(वर्मी कंपोस्ट) उत्पादन विधि का द्विमासिक प्रशिक्षण दिया गया, वर्तमान समय में महाविद्यालय परिसर में स्नातक अंतिम वर्ष में चल रहे ई एल कार्यक्रम के तहत वर्मी कंपोस्ट इकाई में कृषि स्नातक छात्रों को केंचुआ खाद (वर्मी कंपोस्ट) उत्पादन संबंधित विषय में डॉ आर सी सांवल प्रशिक्षण दे रहे है।
मृदा वैज्ञानिक डॉ आर सी सांवल ने बताया कि वर्तमान समय में केंचुआ खाद उत्पादन हेतु कृषि महाविद्यालय, सिरोही में ” आईसिनिया फोइटिडा” नामक केंचुए की प्रजाति का उपयोग किया जाता है, साथ ही डॉ सांवल ने बताया कि केंचुए की यह प्रजाति भारत देश में केंचुआ खाद उत्पादन के लिए बहुतायत रूप से प्रयोग किया जाता है।
केंचुए की इस प्रजाति द्वारा लगभग 1.5 से 2 के अंदर गोबर एवं कार्बनिक अवशेषों को, केंचुएँ खाद में परिवर्तित कर दिया जाता है और केंचुआ खाद (वर्मी कंपोस्ट) बन कर तैयार हो जाती है। डॉ सांवल ये भी बताया कि साधारण गोबर खाद की तुलना में वर्मी कम्पोस्ट में अधिक नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश व अन्य पोषक तत्व मिल जाते हैं। पोषक तत्व उपलब्धता के अलावा यह केंचुए की खाद, मृदा की उर्वरता और मृदा की जीवन प्रत्यासा को बढाती है । इसमें लगभग 2.5 से 3% नाइट्रोजन, 1.5 से 2% फास्फोरस तथा 1.5 से 2% पोटाश पाया जाता है।
डॉ आर सी सांवल ने कहा कि मै सभी किसान भाईयों से आग्रह करता हूं, कि सभी किसान भाई रासायनिक खादों कम से कम उपयोग करें, क्योंकि यूरिया और डी ए पी जैसी रासायनिक खादें मृदाओं को क्षतिग्रस्त करती जा रही हैं। मृदाओं से लंबे समय तक उत्पादन लेना है तो गोबर की खाद व केचुएं की खाद आदि कार्बनिक खादों का की उपयोग करें। वहीं महाविद्यालय के निदेशक श्री दिनेश अग्रवाल द्वारा, डॉ सांवल को वर्मी कंपोस्ट उत्पादन हेतु प्रोत्साहन कर निरंतर वर्मी कंपोस्ट उत्पादन में कार्य करने के लिए प्रेरित किया।
वही महाविद्यालय के रेडी इंचार्ज रामबाबू पाल ने बताया कि कृषि महाविद्यालय परिसर में प्रत्येक वर्ष अंतिम वर्ष के सभी छात्रों को उनके उज्जवल भविष्य एवं उत्कृष्ट जीवन बनाने हेतु ई एल कार्यक्रम के तहत केंचुए की खाद (वर्मी कंपोस्ट) उत्पादन विधि का व्यावसायिक स्तर का प्रशिक्षण प्रदान कराया जाता है जिससे कृषि स्नातक करने के उपरांत कृषि छात्र अपना खुद का व्यवसाय स्थापित कर सकता है और कृषि विकास में सहयोग कर सकता है।