देवली:- (बृजेश भारद्वाज)। अटल उद्यान स्थित टीनशेड प्लेटफार्म पर चल रही श्रीभक्तमाल कथा के तृतीय दिवस पर कथावाचक श्रीश्री 1008 महामण्डलेश्वर दिव्य मोरारी बापू ने बताया कि भगवान का नाम आते ही आपकी आंखों से आंसुओं की झडी लग जाये, यही भक्ति की पहचान है। भगवान् अपने से अधिक भक्तों को आदर देते हैं।
भगवान् अपने भक्तों तथा सन्तों के हैं। श्रीमद्भागवत महापुराण में “अहं भक्त पराधीनः” कहकर भगवान् ने स्वयं भक्तों के आधीन होने की बात स्वीकारी है तथा गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है – “मोते संत अधिक कर लेखा” । भगवान् स्वयं कह रहे हैं कि मुझसे भी अधिक मेरे सन्तों की महिमा हैं। ज्ञान, कर्म व भक्ति एवं इनके विभिन्न रसों में भीगे हुए भक्तों ने किस प्रकार इस भवसागर को सहजता से पार किया तथा भगवान् को अपने प्रेम पाश में बाँध लिया, इसको समझने का साधन है श्रीभक्तमाल। बापू ने तुलसी माला के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि तुलसी माला धारण करनेवाला स्वर्ग में जाता है, शास्त्रों में तीनों वेद, तीनों संध्या, त्रिदेव व तीनों अग्नि से भी ज्यादा कल्याणकारी तुलसी माला को बताया है।
जिसके मुख में राम का नाम, गले में तुलसी माला तथा मस्तक पर तिलक है, वह नर्क नहीं स्वर्ग ही जाता है। रामानुजाचार्य के शिष्य लालाचार्यजी ने कहा है कि अलवर व वृंदावन के संत हरीभाई संसार से नाता तोड कर भक्ति मार्ग पर चल पडे। जयपुर में हरीभाई से किसी भक्त ने परिवार व भाई बंधुओं के बारे में जब पूछा तो हरीभाई ने एक भाई को जुलाहा यानि कबीर दास, दुसरा भाई जूती गांठने वाले यानि रैदास का नाम बताया। भक्ति महिमा का बखान करते हुए बताया कि सुदर्शन नामक भक्त ने घर आये संतों के भोजन के लिए पत्नी को कहा, पत्नी ने तबियत खराब का बहाना बना दिया। सुदर्शन ने स्वयं खाना बना लिया, इसी दौरान पत्नी का भाई आ गया, पत्नी ने स्वादिष्ट खाना भाई के लिए बनाया, सुदर्शन ने पत्नी को पानी लेने के बहाने भेजकर स्वादिष्ट खाना संतों को तथा घर का खाना पत्नी के भाई को खिला दिया, जिस पर पत्नी ने कहा कि मेरी नाक कटवा दी।
सुदर्शन ने कहा कि संतों की सेवा नहीं करने से नाक कटती है,सांसारिक मनुष्यों की सेवा से नहीं। नाभा गोस्वामी जी कहते हैं कि लालाचार्यजी भक्त की कथा सुनने से ही लोगों का कल्याण हो जाता है। चम्पा के फूल में रंग, सुगंध व सुंदरता होती है, लेकिन भंवरा कभी पास नहीं आता।इसका कारण राधा कृष्ण के बीच लुकाछिपी में राधा ने चम्पा के पेड का रुप धारण कर लिया। भंवरा कृष्ण को पिता तो राधा को माता मानता है, इसलिए भंवरा चम्पा में मातृभाव मानकर पास नहीं आता है। भक्त भगवान के साथ भी छल करते हैं, पूजा के लिए घी, सुपारी भी खाने जैसा नहीं लेते हैं, भगवान के समक्ष भी कहते हैं कि हम पापी हैं, हमें क्षमा कर देना, लेकिन सबके सामने अपने आपको भक्त साबित करते हैं।
हरी के सामने, संतों के सामने तथा गुरू के सामने सच्च व्यवहार करना भक्त का पहला लक्षण है। अपनी महानता को दूर रखकर भक्तों के लिए दौड लगाने वाला ही भगवान है। स्वामी प्रियादासजी कहते हैं जिसके सिर पर हाथ रख दें, उसी का कल्याण हो जाये, ऐसे व्यक्ति को गुरु कहते हैं। श्रीपाद पदमाचार्य महाराज की भक्ति का भी वर्णन किया। गुरु जब परदेश जाने लगे तो पाद पदमाचार्य से कहा कि गंगा मैया को मेरा स्वरूप मान कर दर्शन व आरती कर लेना। पदमाचार्य ने गंगा को जब गुरु रुप मान लिया तो गंगाजी में कैसे नहाए, इसलिए कुएँ पर नहाना शुरु कर दिया।
इस बात को दुसरे शिष्यों ने उल्टा सोचकर ने गुरूजी के आते ही शिकायत करने लगे। गुरुजी के पूछने पर शिष्य ने कहा कि गंगा को गुरु मान लिया तो उसमें मैं पैर कैसे रखता। भक्त की भावना को नहीं समझ सके। गिरिराज जी कोई पर्वत नहीं है, साक्षात राधा कृष्ण हैं। तीर्थ में चार रुप में भगवान होते हैं, पहला मंदिर में मूर्ति, दुसरा धाम, तीसरा जल के रूप में तथा चौथा वहां के निवासियों के रुप में भगवान होते हैं। तीर्थों पर जाकर विवाद नहीं करना चाहिए। कथा के दौरान श्रद्धालुओं ने भावविभोर होकर नृत्य किया। आरती व प्रसाद वितरण के साथ आज की कथा का समापन हुआ।