गणाचार्य 108 श्री विराग सागर जी महाराज का प्रथम समाधि दिवस मनाया।

{"remix_data":[],"remix_entry_point":"challenges","source_tags":[],"source_ids":{},"source_ids_track":{},"origin":"unknown","total_draw_time":0,"total_draw_actions":0,"layers_used":0,"brushes_used":0,"photos_added":0,"total_editor_actions":{},"tools_used":{"addons":1,"curves":1},"is_sticker":false,"edited_since_last_sticker_save":true,"containsFTESticker":false}

देवली:-(बृजेश भारद्वाज)। पार्श्वनाथ धर्मशाला विवेकानंद कॉलोनी में चल रहे स्मृति परिवर्तन 2025 चातुर्मास के दौरान परम पूज्य मुनि श्री 108 प्रणीत सागर जी महाराज ससंघ के सानिध्य में समाधिस्थ,गणचार्य 108 श्री विराग सागर जी महाराज का प्रथम समाधि दिवस मनाया गया! आचार्य श्री 108 विरागसागर जी महाराज की समाधि 4जुलाई 2024 को जालना (महाराष्ट्र) में हुई, आगोजन में सर्वप्रथम चित्र अनावरण, दीप प्रज्वलन और मुनि श्री का पादप्रक्षालन श्री महावीर प्रसाद जैन (टोंक वाले) परिवार द्वारा किया गया

कार्यक्रम में मंगलाचरण की शुरुआत अनुराधा जैन द्वारा की गई ! मीडिया प्रभारी विकास जैन टोरडी ने बताया की विराग सागर जी महाराज की संगीत मय पूजन उपस्थित श्रावकों द्वारा की गई! इसी दौरान परम पूज्य क्षुल्लक 105 श्री विधेय सागर जी महाराज ने भजन द्वारा विराग सागर जी महाराज की जीवन गाथा गई! तत्पश्चात परम पूज्य मुनि श्री 108 प्रणीत सागर जी महाराज ने दादा गुरु आचार्य 108 श्री विराग सागर जी महाराज के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि की विराग सगर जी महाराज का जन्म २ मई 1963 को [पथरिया] जिला दमोह (म.प्र) मे हुआ था | उनके पिता का नाम श्री कपूरचंद जी (समाधिस्थ क्षुल्लक श्री विश्ववन्ध सागर जी) व माता का नाम श्रीमती श्यामा देवी (समाधिस्थ श्री विशांत श्री माता जी) है | मात्र 17 वर्ष की आयु में ब्रह्मचारी अरविंद ने तपस्वी सम्राट आचार्य 108 श्री सन्मति सागर जी से क्षुल्लक दीक्षा प्राप्त की एवं उत्कृष्ट चर्या ओर साधना के धारक वात्सलय रत्नाकर,आचार्य108 श्री विमल सागर जी महाराज द्वारा उन्हें 9दिसम्बर1983 में औरंगाबाद मस मुनि दीक्षा प्रदान की गई।

8नवम्बर1992 में विरागसागर जी को आचार्य पद सोनागिर जी मे प्रदान किया गया! आचार्य श्री द्वारा अनेकों ग्रन्थ, खण्ड काव्य, शाष्त्र, धवला टिका आदि रचित की गई! इस सदी के महान आचार्य में से एक महान आचार्य हुए एवं उनकी समाधि भी उत्कृष्ट समाधि हुई! पूवचार्यो द्वारा पहले युगप्रतिक्रमण आयोजित किया जाता था जो की लगभग विलुप्त हो चुका था जिसे आचार्य विरागसागर जी महाराज ने ही प्रारम्भ किया, इसलिए इन्हें युगप्रवर्तक भी कहा जाता है! आचार्य श्री ने लगभग 250 दीक्षाएं अपने कर कमलों द्वारा प्रदान कर जिन चलित तीर्थ का निर्माण किया, एवं कई पंचकल्याणक एवं कई उत्कृष्ट समाधियां आचार्य श्री द्वारा कराई गई! इसी के साथ जितेंद्र मित्तल बाजटा ने जानकारी देते हुए स्मृति परिवर्तन2025 चातुर्मास के अंतर्गत मुनि श्री की नित्य चर्या के बारे में बताते हुए बताया कि प्रातः 6बजे से 7बजे तक महाराज श्री नित्य सभी जिनालयों के दर्शनार्थ जाएंगे एवं प्रातः 7.15 बजे से 8बजे तक श्रुत शाला, 8.30 बजे से 9.30तक, 9.40पे आहारचर्या तत्पश्चात सामयिक, फिर 3बजे से 4बजे तक सर्वभक्तिया-स्तोत्र पाठ, 4से 5बजे तक शब्दागम की क्लास तत्पश्चात गुरुभक्ति एवं सांय 5.45 से 6.30 तक बालक-बालिका के लिए श्रुत शाला की क्लास एवं उसके उपरांत महाआरती का आयोजन होगा, पर्व विशेष को छोड़कर नित्य यही कार्यक्रम आयोजित होंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *