देवली:-(बृजेश भारद्वाज)। धर्मनगरी देवली में चल रहे स्मृति परिवर्तन 2025 चातुर्मास के अंतर्गत आज चंद्रप्रभु अग्रवाल दिगम्बर जैन मंदिर सदर बाजार में श्रमण मुनि श्री 108 प्रणीत सागर जी महाराज ससंघ के सानिध्य में महामस्ताकाभिषेक एवं शांतिधारा का अभूतपूर्व आयोजन संपन्न हुआ! मीडिया प्रभारी विकास जैन (टोरडी) ने बताया की यह आयोजन अब तक देवली के इतिहास में प्रथम बार आयोजित हुआ जिसमें सर्वप्रथम मुनि संघ को पार्श्वनाथ धर्मशाला विवेकानंद कॉलोनी से जुलूस के साथ चंद्रप्रभु दिगम्बर मंदिर लाया गया
वहां पर समाज अध्यक्ष बंशीलाल सर्राफ, चंद्रप्रभु नवयुवक मंडल, एवं समाज के सभी श्रावकों द्वारा मुनि श्री के पाद प्रक्षालन किए गए! मुनि श्री द्वारा सर्वप्रथम सभी श्रद्धालुओं से महामस्तकाभिषेक की क्रियाएं संपन्न करवाई तत्पश्चात शांतिधारा का आयोजन मुनि श्री के मुखारविंद से हुआ! शांतिधारा कर्ता परिवार में बंशीलाल–राजेश सर्राफ परिवार, विनोद कुमार–पार्थ जैन( मोतीपुरा वाले ),प्रहलाद राय–महावीर जैन (लाइट वाले), चंद्रकांता–पंकज जी सर्राफ परिवार की तरफ से की गई! इस आयोजन के दौरान मुनि श्री के द्वारा चातुर्मास काल में ही चंद्रप्रभु मंदिर में 2नवीन वेदियों का निर्माण भी होगा जिसकी सभी क्रियाएं मुनि श्री के दिशा निर्देशन में ही संपन्न होगी, जिसमे पंच बालयति तीर्थंकर की प्रतिमा एवं एक वेदी पर 24तीर्थंकरों की प्रतिमाएं प्रतिष्ठापित की जाएगी,जिसका उपस्थित समाज के सभी श्रावकों ने अनुमोदना की! इन सभी क्रियाओं के पश्चात मुनि संघ को पुनः पार्श्वनाथ धर्मशाला लाया गया जहां पर धर्म सभा का आयोजन हुआ जिसे मुनिश्री द्वारा संबोधित किया गया! मुनि श्री ने प्रवचन देते हुए बताया की हम पर वस्तुओं को देखकर उनके लिए चिंतन करने लगते हैं लेकिन जो आत्म वस्तु है उसके लिए हमने कभी चिंतन किया ही नहीं
दृश्यम वस्तु जो है वह विनाशशील है और जो अदृश्य वस्तु है वह अविनाशी है! एक सूत्र के माध्यम से मुनि श्री ने बताया कि “विनाशी या अविनाशी में किसका हूं प्रत्याशी” इस सूत्र पर हम सभी को एक बार चिंतन करना जरूर आवश्यक है, हम स्वयं की आत्मा के लिए चिन्तन नही करके पर पदार्थ की चिंता में सदैव फंसे रहते है स्वकल्याण के लिए स्वयं का चिंतन आवश्यक है! प्रवचन से पूर्व श्रुतशाला के छात्र नानू जैन,मुनिराय एवं जयकुमार द्वारा मंगलाचरण किया गया, इसी के साथ चित्रणावरण, द्वीप प्रज्वलन एवं मुनि श्री के पादप्रक्षालन की क्रिया भँवर दलवासा वाले परिवार के द्वारा की गई। तत्पश्चात मुनि श्री की आहारचर्या सम्पन्न हुई।


