छल, कपट और दिखावे को त्यागकर सरल वाणी बोलना ही आर्जव धर्म- मुनि श्री प्रणीत सागर।

पर्युषण पर्व के तृतीयदिवस पर उत्तमआर्जव धर्म की हुई पूजन-

 

देवली:-(बृजेश भारद्वाज)। धर्मनगरी देवली मे विवेकानंद कॉलोनी स्थित पार्श्वनाथ धर्मशाला में परम पूज्य मुनि श्री 108 प्रणीत सागर जी महाराज एवं क्षुल्लक 105 श्री विधेय सागर जी महाराज के सान्निध्य में चल रहे पर्युषण पर्व महामहोत्सव के अंतर्गत तृतीय दिवस पर उत्तम आर्जव धर्म की पूजन की गई। प्रातः काल मे 6.30 बजे सर्वप्रथम श्री जी की शांतिधारा एवं अभिषेक पूजन की गई।

इसी के साथ प्रातः 9 बजे से 10 बजे तक श्रुतशाला के विद्यार्थियों द्वारा तत्त्वार्थ-सूत्र के 10 अध्याय का वाचन किया गया। वाचन के उपरांत मुनि श्री ने आज तृतीय अध्याय का विस्तार से अर्थ बताते हुए बताया की सात नरक की विवेचना की एवं उनमे उतपन्न होने वाले नारकीय जीवों के ज्ञान एवं गुणस्थान के बारे में समझाया। इसी के साथ उत्तम आर्जव धर्म पर प्रवचन देते हुए बताया की छल, कपट, ओर दिखावे को त्यागकर सीधी और सरल वाणी बोलना ही सच्चा आर्जव धर्म है! जिस मन मे निष्कपट का भाव होता है वहां न तो झूट बस सकता है और ना ही कपट टिक सकता है, आर्जव वही है जब मन-वचन-और कर्म तीनों में एकरूपता और सत्यता हो। मीडिया प्रभारी विकास जैन टोरडी ने बताया की प्रथम सत्र में भगवान की प्रथम शांतिधारा छितर जी कालेड़ा वाले परिवार एवं द्वितीय शांतिधारा का सौभाग्य राजेन्द्र कालेड़ा वाले परिवार को प्राप्त हुआ।

इसी के साथ उत्तम आर्जव धर्म के द्वितीय दिवस पर मुनि श्री का पादप्रक्षालन, चित्रणावरण, द्विपप्रज्वलन, एवं शास्त्र भेंट का सौभाग्य राकेश,विशाल जैन गुलगांव परिवार को प्राप्त हुआ इसी के साथ बताया की दोपहर के सत्र में “सोलहकारण विधान” का आयोजन वाणीभूषण पंडित प्रवर अंकित शाष्त्री दमोह एवम संगीतकार अवनीश जैन गुना के निर्देशन में हुआ।तृतीय दिवस पर विधान पुण्यार्जन एवं सौधर्म इंद्र बनने का सौभाग्य बाबूलाल, सुमित नासिरदा वाले परिवार को प्राप्त हुआ। इसी के साथ मे रात्रि में सांस्कृतिक क्रार्यक्रम के अंतर्गत “नेमि का वैराग्य” का मंचन स्थानीय समाज द्वारा किया जाएगा।

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